मिलीजुली सरकार से हो गए हैं
मिलीजुली सरकार से हो गए हैं
सुबह एक बार जो पढ़कर किनारे रख दे,
हम कुछ ऐसे पुराने अख़बार से हो गए हैं !
इब क्या कहें हाल अपनी कमतरी का,
उनके इशारे पर नाचते लाचार से हो गए हैं !
वो जो दूर से देखते हैं हाल हमारा बेहाल,
आजकल बड़े बेमुर्रव्वत बेजार से हो गए हैं !
अपनी ज़िन्दगी के कुछ पन्ने लिखे अधूरे से,
उम्मीद की रौशनाई की दरकार से हो गए हैं !
झूठ, कपट, धोखा, मक्कारी उनके शगल बन गए हैं,
राजनिति में वो भी मिलिजुली सरकार से हो गये हैं !