मिली आज फिर !!
मिली आज फिर !!
मिली आज फिर आईने से
सालों बाद .. अक्स उसका ही अजनबी सा लगा कुछ
कुछ वक्त ज्यादा ही गया था गुजर
फसानों में दुनिया की..
चुराई थी वक्त की लंबी सी चादर
अपनी हि जवानी की.
खोया नूर ,रंगत रुखसार का वाकिफ नहीं था कोई भी
उसके इस नुकसान का
हाँ जुमले तो हर कोई सुनाता था
सब कुछ तो तेरा है तेरे पास और इससे अच्छा क्या भाग्यवान होना है यार
हाँ सबकुछ मेरा फिर भी मेरा कहाँ ना बच्चों के नाम के पीछे नाम ना घर की किसी चिज पे भी
जब चाहे कोई भी बोल देता अक्ल नहीं है तुम्हें दो रुपए भी कमाने की
धिरे धिरे घर खाली सा हो गया बच्चों ने अपना अलग घरौंदा बना लिया थका शरीर ..आँखों ने भी जवाब दे दिया
जोड़ा कुछ नहीं था ..बस इक घर और घर के ही रिश्तों के सिवा ..
अब जाके कुछ ढूँढने निकली हूँ खाली कमरों और दीवारों में ..
बस अब जाके मिली हूँ आज फिर अपने ही वजूद से फिर …