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प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Drama

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प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Drama

मिलाकर नज़र कुछ चुराकर ले गया

मिलाकर नज़र कुछ चुराकर ले गया

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मिलाकर नज़र कुछ चुरा ले गया,

इजाजत बिना दिल मिरा ले गया।


मुकम्मल जहाँ से उठाकर मिरे,

कहें क्या कि क्या बेवफा ले गया।


मिरे घर से अक्सर गुजरता रहा,

मुकम्मल सनम रास्ता ले गया।


दिखें हरतरफ हैं सभी गमजदा,

खुदा क्या जमीं से दुआ ले गया।


बसा कब मिरा भी मुकम्मल जहाँ,

दिलों में हुआ फ़ासला ले गया।


सितारें जो रखता कदम में मिरे,

चुराकर उसे... दूसरा ले गया।


रही देखती हारकर मैं उसे,

मुझी से मिरा जो खुदा ले गया।


बमुश्किल निभाई रदीफे ग़ज़ल,

चुराकर कुई काफिया ले गया।


कदम-दर-कदम साथ चलना मिरे

मिले तुम मुझे हौसला मिल गया।।


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