महफिल
महफिल
महफिल में चले जाए, सजती महफिल है,
अपनों के साथ चले, गैरत भी यूं हँसती हैं।
दुश्मन की सूरत, दिल में ही सदा बसती है
कभी नहीं डूबती जो, हम बस वो कश्ती है।।
तुम्हारे ख्याल ने ही तो,इंसान बन गया हूं,
हर महफिल में बस, लगता मैं ही नया हूं,
तुम जानती हो, कितनी हैसियत है हमारी,
बेरहमी के इस संसार में लगता में दया हूं।
कुछ तोहफे रखें हैं,उससे दिल लगाने को,
बहुत गरीब मिले, खाना उन्हें खिलाने को,
नये साल पर यूं, दोस्तों से मन लगाने को,
महफिल में जाकर,महफिल को सजाने को।
बचपन बचाते हैं,बात कभी नहीं छुपाते हैं,
मन की ही बात,बस अपने मन से बताते हैं,
दुश्मन गर मिले, उसको पास में बुलाते हैं,
महफिल में देखों, बस हम शान से छाते हैं।
