महंगे ख़याल
महंगे ख़याल
"महंगे हैं ख़याल मेरे बहुत महंगे"
चुभते अंधेरों को चीरकर चले आते हैं
पर, मन की दहलीज़ पर बैठी एक तुम्हारी यादों से टकराते हारते सहम जाते हैं
मुसलसल मेरी धड़कन की तान पर बहते तुम्हारे नाम का सुमिरन मेरी साँसों की लय से ताल मिलाते कहता हैं , ए सोना तुम मेरी हो...
प्रेम की उस शाश्वत अनुभूति की चरम महसूस करते मेरे स्पंदन बहक जाते हैं ,
चद्दर की सिलवटों में बसी तुम्हारे जिस्म की खुशबू से उलझते कब तक रोती रहूँ...
कोई शिकायत नहीं तुमसे बेइन्तहाँ मोहब्बत है ,
हाँ मैं तुम्हारी हूँ पर सोचा है तुमने कभी उड़ने के शौक़ का मारा पंछी आकाश नहीं चुगता...
मोती कहाँ मांगे मैंने आ जाओ अचानक किसी उदास शाम को मेरे नाम करते, तुम्हारे कदमों की आहट पर कुर्बान जाऊँ
मिटने की कगार पर खड़े रिश्ते में संचार भर जाओ...
कब तक ख़यालों से खेलती रहे प्रीत मेरी एक उम्मीद छोड़ कर गए हो
मेरी आँखों में "जल्दी लौटूँगा" इन शब्दों से लिपटी हैं उसी उम्मीद में ज़िंदगी भर जाओ..