महज सांसों का रुक जाना
महज सांसों का रुक जाना


महज सांसों का रुक जाना,
मौत कभी नहीं जन मानते,
अहित करें इस जग में जो,
उसको ही मौत जन जानते।
महज सांसों का रुक जाना,
डर का देता है जन आभास,
जीना उसका असली जीना,
जो पाप, बुराई का करे नाश।
महज सांसों का रुक जाना,
नहीं होता है बुराई का अंत,
पाप कर्मों जगत से मिटा दो,
कह गये जग से कितने संत।
महज सांसों का रुक जाना,
मिट सकता नहीं जन नाम,
सत्य धर्म का नाश नहीं हो,
मधुर सुगंध फैलाना काम।
सांसे कभी भी
बंद हो जाये,
राह में चलते चलते गिरता,
उसका अंत कभी नहीं जग,
जो असत्य से हरदम डरता।
सांसे जीवन भर चलती रहे,
दुख दर्द इंसान पर ना आये,
हर इंसान सुख भोगता मिले,
आपदाएं जन को ना रुलाये।
साहस भी आगे नहीं बढ़ता,
जब हिम्मत इंसान की घटे,
आगे इंसान यूं बढ़ता जाये,
ख्वाब हिलोरे यूं लेते रहेंगे,
बस सांसों की डोर ना बटे।
महज सांसों का रुक जाना,
लोग मानते हैं जिंदगी अंत,
पर मरकर जो नाम कमा ले,
आशाएं उभर आएंगी अनंत।