"प्रकृति माँ "
"प्रकृति माँ "
मान "प्रकृति माँ" मुझे करते हो तुम सौ काम बुरे,
करते फिरते माँ-माँ दिनभर काट देते हो अंग मेरे,
रो लेती हूँ भरकर आँसू, तो कह देते हो बाढ़ मुझे,
अब तो ना कर मुझ पर इतने अत्याचार बुरे!
देती हूँ जीने के लिये साँस तुझे,
पर बना दिया है तूने तो प्रदूषण की खान मुझे,
देती हूँ जीवन भर अनाज तुझे,
पर बना देते हो तुम फसलों की राख़ मुझे,
देती हूँ अच्छा निवास तुझे ,
पर बना दिया है तूने अधमरी लाश मुझे,
क्यूंकि कहता है तू माँ मुझे,
तो कर देती हूँ हरदम माफ़ तुझे!
तप रही हूँ जल रही हूँ मैं अपने बुखार से,
तो कह देते हो ग्लोबल वार्मिंग मुझे,
ला दूँ खुशियाँ जीवन में,
तो कह देते हो मौसम की पहली बरसात मुझे,
देख तेरी नादानियाँ काँप उठूँ तो कह देते हो भूकंप मुझे,
फट जाता है गुस्सा बनकर ज्वालामुखी मेरा,
तो कह देते हो विकराल मुझे!
मान लें फिर से अपनी माँ मुझे, छोड़ दे ये काम बुरे!