तुम भी कम नहीं
तुम भी कम नहीं
तुम भी कम नहीं फिर उदास कैसे
इतने दूर गये हो फिर पास कैसे
मनस्वी हो ये एहसास है सबको
हम भी सम नहीं फिर उपहास कैसे !
कभी फुरसत में याद नहीं करते
पर अवसान में हमेशा साथ कैसे
ये तो महफ़िल है पल दो पल की
तुम्हारी याद फिर बकवास कैसे !
ज़रा सी आहट पर जो संभल जाते
नजरों की भाषा भी समझ जाते
इनको क्या हुआ ये हादसा ऐसा
प्यार की बात भी लगे अट्टहास कैसे !
वक़्त है, तकाजे की फिक्र न कर
रक्स है उनसे, तो भी ज़िक्र न कर
लिपट जायेंगे, वो दिन मुबारक होगा
फिर मिटाने का, ऐसा दुस्साहस कैसे !!