गर प्रेमपूर्वक संग जीना पाप है तो
गर प्रेमपूर्वक संग जीना पाप है तो
जब हम एक- दूसरे के साथ अपनी जिंदगी जीने
मतलबी दुनिया से कोसों दूर कहीं अपने आशियां में चले जाएंगे,
तब दुनिया शायद सोती होगी !
लेकिन उसकी जीभ जागती होगी।
आखिर ये दुनिया कब किसी प्रेमी जोड़े को चैन से जीने दी है ?
किसी दो दिलों की धड़कन की खुशी कब इसे हजम हुई है?
इसे कहाँ प्रेम की भाषा अभी तक समझ आई है ?
हमपर निंदा की बौछारें होंगी ,
मान- मर्यादा को धूमिल कर देने वालों में हमारी गिनती होगी।
लोग हमें नापाक इरादों से ऐसी बद- दुआ देंगे जैसे हमने कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो !
अरे ! हमने प्रेम पूर्वक एक- दूसरे के साथ जीना ही तो स्वीकारा है।
एक - दूसरे का अंतिम साँस तक साथ निभाना ही तो स्वीकारा है।
भला प्रेम पूर्वक संग जीना भी पाप ही है क्या ?
अगर दुनिया इसे पाप मानती है तो हम ये पाप करने को तैयार हैं।
गर प्रेम पूर्वक जीना पाप है तो --
साथ ही इसके अंजाम भुगतने को भी हम तैयार हैं।
सिवाय उस पाप के जिसमें लोग निज हित साधने के लिए दूसरे का इस्तेमाल करते हैं ,
क्या उस पाप से भी ये बड़ा है ?

