कृष्ण भी न साथ है
कृष्ण भी न साथ है


यज्ञासेनी सी आज फिर से
क्यों तू झुलस रही
धर्मसभा में खड़ी फिरसे
क्यों तू सिसक रही
दुर्योधन भी आज एक नहीं
दुशासन के भी चार चार हाथ है
मौन फिरसे ज्ञानी है सब
कृष्ण भी ना साथ है
कृष्ण भी ना साथ है।
देख ना ऊपर ईश को
सखा तेरा यहां नहीं कोई
किसी से न रख आस तू
आबरू तेरी जो लुट रही
ना जा रूदन करती किसिके पास तू
उठ खड़ी होजा काल सी
लड़ जाने की सी बात है
कृष्ण भी जो ना आज साथ है
कृष्ण भी जो ना आज साथ है।
ज्वाला सी तेज रख
पास आने में भी वोह घबराएगा
बिगुल बजा एक युद्ध का
महाभारत भी आज दोहराएगा
शिखंडी सा साहस रख
तप बना तू जीवन को
बन कठोर पत्थर सी
चंचल ना रख अब मन को
न्याय का सूरज है डूब चुका
अनंत ही अनंत अब रात है
कृष्ण भी जो न आज साथ है
कृष्ण भी जो न आज साथ है।