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Rushil Agarwal

Inspirational Others

4.1  

Rushil Agarwal

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आज़ादी

आज़ादी

1 min
30


चिड़िया थी सोने कि वोह, उड़ती थी गुरूर से,

पंख फैलाए विशाल से , मोहित करती दूर से ,

पर आ टपके कुछ भूके भेड़िए, रच दी खौफनाक साजिश

कतर दिए उसके पंख, कैद करने की थी साजिश, कैद करने की थी साज़िश|


चाही डालनी खूब फुट, मजहब को भी न पाक छोड़ा

राम रहीम जो साथ थे,उनको भी जा तोड़ा

इंसानियत का तो उन्हें इल्म ही ना था, जाहिल कहकर वोह हमको हमारे मेहमान बने थे ,

भगवान मानते थे हम जिनको, वोह मेहमान के वेश में हैवान बने खड़े थे , हैवान बने खड़े थे|


त्राहि का कोलाहल था गूंज रहा, संकट से देश था जूझ रहा

तब काली का रूप लिए, लहू की बौछार किए 

वो खूब लड़ी मर्दानी सी, वो झांसी वाली रानी थी, वोह झांसी वाली रानी थी|


सिलसिला ये विद्रोह का और स्वर ये स्वराज का ,

धूमिल सा कर रहा था राज्य ये हैवान का,

सालो तक लड़े फिर खूब बाल, करदी धरती लहू से लाल,

आज़ाद, भगत, मंगल, सुभाष , ऐसे अनेक भी और जांबाज़

क्या थे जो कल ये इसी लिए ना हैं हम तुम आज़ाद आज , ना हैं हम तुम आज़ाद आज|


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