अनूप सिंह चौहान ( बब्बन )

Classics

2  

अनूप सिंह चौहान ( बब्बन )

Classics

महफ़िल

महफ़िल

1 min
132


देखीं हैं कई महफिलें वो ख़ास नहीं थीं

याद रखीं जायें ऐसी कोई बात नहीं थी

मगर भूलती नहीं एक सुनी हुई महफ़िल

महफ़िल कि जिसमें माइकल ओ डायर की लाश गिरी थी

सत्ता भी ब्रिटिश की थी महफ़िल भी उन्हीं की

कातिल वो जिसने हिन्द में नरसंहार किया था

सम्मान बड़ा जिसका इस महफ़िल में हुआ था

उसको सज़ा जो करनी की उधम सिंह ने दी थी

गिद्धों की पूरी सत्ता की ही नींद उड़ी थी

विचलित न हुआ तनिक वो पुत्र हिन्द का

सरदार हिला न बिल्कुल जैसे खड़ा नरसिंह था


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics