कृषक
कृषक
सूखा बारिश जाड़ा गर्मी
हर मौसम की फिक्र है उसको
न थकान न रोग न व्याधि
श्रम करने की लगन है उसको।
शनि रवि कोई वार न देखे
जीत न देखे हार न देखे
बन्धु बान्धवों का प्यार न देखे
स्वयं को रख कर दिन भर भूखा।
सबका वो आहार सहेजे
जीव मात्र पर दया वो करता
सब जीवों का पेट वो भरता
छोड़ सरलता निज जीवन की
दुष्कर जटिल कृषि को चुनता।
कृषक वही मानव बनता है
जिसको स्वयं प्रभु है चुनता।