रात और अंधेरा
रात और अंधेरा
रात मैं
अगर अंधेरा है तो
रात का दोष कहां पर है
पत्थर कठोर होता
उसमें भी मीठे पानी का सोता होता
बिखर गये जो रिश्ते
जो आंगन टूट गये,
वो टूटी चूडी से
साथ तो होते पर कभी नहीं जुडते
कितना सरल है
घर छोड कर ज्ञान वान बुद्ध जैसा होना
जिस दिन
अगर औरतें ज्ञान पा जायेंगी
दिन तो होगा
रौशनी नहीं होगी
औरतें सह सकती हैं अन्याय और अत्याचार
मार या तिरस्कार
वो लड सकती हैं
गंवारों की तरह
मोह, ममता छोड कर
वो जिस दिन पति को सोता छोडकर
झूठे बंधन तोडकर
अनसूया,सीता या सावित्री बनना छोड कर
अगर ज्ञान वान बुद्ध बन जायें
चली जायें सत्य की खोज मैं
आखिर उसका भी मन होता होगा
जीवन के झंझट से बाहर निकलने का
अगर औरतें ध्यान लगा कर
खुद को खुद मैं खोजने लग जायें
न्यूनताओं का अर्पण कर के
भारी मन हल्का कर लें
न दें खुद को धोखा
आखिर मन तो सबका एक जैसा है
अगर औरतें भी हो जायें
बुद्ध जैसे आंखें मूंदे बैठा हो
संसार मैं दुख है
दुख का कारण तृष्णा है।