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Chandresh Kumar Chhatlani

Classics

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Chandresh Kumar Chhatlani

Classics

महामानव

महामानव

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कभी किसी दिन का एक आम लड़का

कर जाता काम किसी और दिन बड़े-बड़े.

पा लेता है शक्तियां असाधारण,

भर लेता है उड़ान अपने लक्ष्यों के परों से.


क्षमता शारीरिक और मानसिक हो जाती है असाधारण,

हो जाता है वह आदर्श श्रेष्ठ व्यक्ति भी.


निकल पड़ता है वह सपनों के पेड़ों पर लदे खुशियों के फलों को तोड़ने.

साँस उसकी थमती नहीं, चाहे अस्थमा अटैक हो जाए,

खून भी रगों में सूखता नहीं, चाहे एनीमिया का हो प्रहार.

उसे बीमारी होती है - सिर्फ चलते रहने की.

उसे विचार आते हैं सिर्फ उन मानवों की रक्षा के, जिनके लिए उसने खुदको बनाया है महामानव.


खुद-ब-खुद ही ढल जाता है एक आम लड़का एक महामानव में.

बहुत आसान है बनना सुपरहीरो 

तुमने तो सिर्फ लिखा है सुपरहीरो को जेरी सीगल 

क्रिप्टॉन के अंतिम वासी काल-एल को समझाया,


और चाहो तो

देखो किसी पिता को सिर्फ एक बार 

देख लोगे इसी धरती के सुपरमैन को.

जिसे कितनी ही बार मिलती है संज्ञा।


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