मेरी सेवा मेरा अभिमान
मेरी सेवा मेरा अभिमान
मेरी सेवा था मेरा अभिमान।
रोज सुबह जाना और शाम तक आना।
घर के सारे काम निभाना।
मुश्किल हो जाता था कई बार मन को मनाना।
यूं लगता था हमने किया नहीं क्या परमात्मा और समाज के लिए कोई काम?
तब मन को समझाया था।
अपने काम को ही पूजा बनाया था।
अपने सरकारी दफ्तर में मेरी वजह से किसी का काम ना रुके
इसी को अपना लक्ष्य बनाया था।
प्रसाद रूप में जनता का बहुत प्यार पाया था।
समय पर जाना, समय पर आना।
कर्तव्य अपना पूर्ण रूपेण निभाना।
मेरी सेवा था मेरा अभिमान।
प्रसाद रूप में मैंने पाया
सेवानिवृत्ति के समय मेरा भी कोई काम रुक ना पाया।
कुछ लोग जो धरते थे सरकारी नौकरी पर कोई नाम।
परमात्मा की रही कृपा ऐसी कि आज भी याद करते हैं
लोग मुझे और अधिकतर को याद है मेरा नाम।
मुझे तो मिला सबका बहुत ही प्यार सम्मान।
परमात्मा की सेवा समझ कर ही मैंने किया था काम।
परमात्मा की दया से वह समय भी आया।
जब सेवा निवृत हो मैं घर पर आया।
अब साहित्य सेवा का ही है बीड़ा उठाया।
तब भी हम हिंदी में ही करते थे काम।
अब भी हिंदी में ही सकारात्मक लेखन कर
हम हिंदी को ही दिलवाएंगे राष्ट्रभाषा का मान और सम्मान।
