कितने आज़ाद हम
कितने आज़ाद हम
आज़ादी का तिरंगा तो
हम हर वर्ष शान से फ़हराते हैं
जिनकी बदौलत मिली हमें आज़ादी
हम उन सभी वीरों को भी सलाम करते हैं,
पर सवाल तो अब भी वही है कि
हम विचारों से कितने आज़ाद हुए हैं
घटिया मानसिकता तो है सब ही पाले
फिर क्यूँ विचारों की आज़ादी को नहीं समझे हैं,
रात की अँधेरी गलियों में भी
अपनों के साथ चलने में भी डर लगता है
बचपन की मासूमियत को ज़बरदस्ती
बाजारों में खटने को है मज़बूर किया,
हर नज़र में है आज वहशीपन
क्यों ऐसा नजरिया सबका यहाँ हो गया
ये देश तो है हम अपनों का ही
फिर ये सब अपने देश में
अपनों के संग ही क्यों ये हो रहा,
आज़ादी की बेफज़ुली मांग को
आज उच्च संस्थानों के पढ़ेलिखे विद्यार्थी कर रहे,
देश की एकता और अखंडता को तोड़ने
कुछ मुट्ठी भर लोग नफ़रत का जाल बिछा रहे,
सही आज़ादी तो वो है जो
हमे हमारे विचारों को उच्च बनाये
ईमानदारी और निष्ठा की भावना से
हर एक को एक से दिल से मिलाएं।