फ़ौजी संस्कार
फ़ौजी संस्कार
बचपन से ही वो देख रहा था
पिता को वर्दी में जाते हुए
बड़ी मुस्तैदी से बंदूख पकड़
उस सरहद पे फ़र्ज़ निभाते हुये,
वर्दी पहनने से पहले उसने पिता को
टोपी बेल्ट को सर माथे लगाते हुए देखा है,
तभी पहचाना इस वर्दी की कीमत
और जाना क्या होता है देश के लिए फ़र्ज़,
"घर से पहले देश ज़रूरी है"...
यही वाक्य हरवक्त सुना था उसने,
होली दिवाली पे औरों को खुश देख
खुद को भी तसल्ली दे समझाया था उसने,
आज यही सोच उसकी आँखें नम हो चली
वही जज़्बातों को समेट उसने भी वर्दी पहन ली,
जानें से पहले उसने भी माँ के पैर छुए
उस माँ की ममता भी खुद को रोक न सकी।
हाँ, आज दुआओं के साथ उस बेटे ने
माँ से कुछ वचन भी लिए हैं
वतन के वास्ते अगर शहादत पाए तो
उसके चेहरे पे गर्व हो और ना आँखें नम हो,
क्योंकि वो बेटा है उस जाबांज़ सिपाही का
जिसने फ़क्र से तिरंगे की शहादत पायी थी,
ये फ़ौजी संस्कार तो उस पिता से ही आये हैं
आज फिर उसी जगह उसने अपनी पहली पोस्टिंग जो पायी है।