वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें
वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
जब तक थी धारा 370
पत्थरबाज फेंक रहे थे पत्थर
पत्थर से लहूलुहान होकर,
देश के जवान जो हुए शहीद।
आज उन शहीदों की मजारों पर
झिलमल झिलमल दीप जला लें।
जहां सिसकती राख चीता की
वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें।
पत्थर से लहूलुहान होकर,
सुहागिन का जहां सिंदूर मिटी।
गिरे कंगन टूट टूट कर के
मां का भी उजड़ा कोख
मां-बहनों के गमगीन आंखों से,
आंसू के झरने जहां झरे हैं।
जहां सिसकती राख चीता की
वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें।
उदासी पहाड़ों में, बदहासी चिनारों में,
शुन्य मजार सिसकती है।
चलो साथी दीप जला ले,
अमरत्व जहां पर बहती है।
जहां गंगा-जमुनी तहजीब का
आंसू रो रो गया है।
जहां सिसकती राख चीता की
वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें।
आज उन शहीदों के मजारों पर हम
खूबसूरत कोमल फूल खिला लें।
देशभक्ति भरी गीत सुना कर
उनको अच्छी नींद सुला लें।
जिनकी करनी से हटी 370
उनको चलो गले लगा लें।
जहां सिसकती राख चिता की
वहीं ईद-दिवाली आज साथ मना लें।