गंगा दशहरा
गंगा दशहरा
विधा-दोहा छंद
लाये गंगा को धरा, हुए भगीरथ धन्य।
कहलाईं भागीरथी, करतीं पोषित जन्य।।
ऋषि की पुत्री जान्हवी, स्वर्ग धरा पाताल।
बहती आई तुम सतत, उतरी तुम बंगाल।।
पावन गंगा माँ नदी, सदा रही विशाल।
सबको तुम ही तारती, बलखाती है चाल।।
अलकनंद भागीरथी, जगत कल्याण काम।
गंगा यमुना सरस्वती, बना त्रिवेणी धाम ।
नीर तुम्हारी है अमृत, करते सब ही पान।
कटते सारे पाप भी, करते हम गुणगान।।
निर्मल धारा बह रही, देती जीवन दान।
है प्रयाग संगम बना, तुम पर करते मान।।
पृथ्वी अधिक प्रिय जिन्हें, गंगा जिनका नाम।
जीवनदायिनी हो तुम्हीं, माता तुम्हें प्रणाम।।
पावन गंगा दशहरा, शुभ दिन है वह आज।
देते हम शुभकामना, करना पावन काज।।
