मेरी रहबर !
मेरी रहबर !


उसके
आँखों के
काले काजल,
लाल-लाल
माथे कि
बिंदिया,
गोरे-गोरे
गाल,
होठों पे
मधुशाला,
जुल्फ घनेरी
शाम,
जैसे छलकता
जाम,
बलखाती कमर,
बाली उमर,
तिरछी नजर,
करें बेखबर,
ना हो सबर,
जाये तो जाये
किधर,
मोहब्बत का चादर
ओढ़े,
मोहतरमा
चली आ रही थी
इधर,
उसपे पड़ी जब
मेरी नजर,
लगा ऐसा
जैसे
वही हैं,
मेरी रहबर!