मेरी डायरी
मेरी डायरी
डायरी के पन्ने फड़फड़ा रहे थे
मानो मुझे बुलाया रहे थे
कहना चाह रहे थे कि बहुत दिनों से तुमने न कि
हमसे बात
क्यों चुप हो क्यों हो उदास !
शायद उनको मेरी आँखों के भीतर की उदासी दिखी थी !
शायद मैंने काफ़ी समय से न कोई भी कविता लिखी थी !!
तब मैंने भी कलम उठाई और अन्तर्मन की उदासी
शब्दों में मुखरित होकर जैसे बाहर आई !
एक ही प्रश्न कि आख़िर कब तक ?
कितने समय तक रहना पड़ेगा घर में नजरबंद
कब इस कोरोना महामारी से करना पड़ेगा द्वंद्व !!
कब तक देश के लोगों को करना पड़ेगा सब कुछ बंद !
कब से स्कूल कॉलेज माल बाज़ार खुलेंगे जो हैं
कितने समय से तालाबंद !
आख़िर कब तक ?
और तभी मेरे भीतर आत्मतत्व की आवाज़ आई !
कि बस थोड़े दिन की है बात !
समझते हैं तुम्हारे जज़्बात !
कुछ दिनों के बाद सब कुछ फिर अच्छा होगा !
बाज़ार होंगे गुलजार !
मनाओगे सब मिलकर त्यौहार !
स्कूलों में गूँजेगी बच्चों की हंसी !
मैदानों के झूले में भी होंगी किलकारी !
शादियों में होगी रौनक और मस्ती की फुहार !
बस थोड़े दिन की है बात !
