लड़कियां तराशी जातीं
लड़कियां तराशी जातीं
लड़कियां !
अपने ही घर में
तराशी जातीं
पराये घर को
खुश रखने के लिए।
लड़कियां !
इक दिन
दान कर दी जातीं
बिना मरजी जाने।
लड़कियां !
रात को चुपके से खोलतीं
दुपट्टे की गांठ
और दिये की लौ में परखतीं
रिश्तों में अपनापन
लड़कियां !
कलमबंद बयान नहीं
जुबानी हलफनामा होती हैं।
