STORYMIRROR

akhilesh kumar

Abstract Classics

4  

akhilesh kumar

Abstract Classics

लड़कियां तराशी जातीं

लड़कियां तराशी जातीं

1 min
171

लड़कियां !

अपने ही घर में

तराशी जातीं

पराये घर को

खुश रखने के लिए।

लड़कियां !


इक दिन

दान कर दी जातीं

बिना मरजी जाने।

लड़कियां !


रात को चुपके से खोलतीं

दुपट्टे की गांठ 

और दिये की लौ में परखतीं

रिश्तों में अपनापन

लड़कियां !


कलमबंद बयान नहीं

जुबानी हलफनामा होती हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract