मेरा अनमोल भारत
मेरा अनमोल भारत
आर्यों की यह पावन धरा ,
इसमें देवों का निज बास है।
अनेकता में एकता का देखो,
पग पग पर यहां अहसास है।
सिकंदर,गजनवी, मुगल,अंग्रेज
जाने कितने अत्याचारी आए।
मिट गए विलीन हो गए सब के सब,
अखंडता का कण भी ना हिला पाए।
यह धरा नही है मिट्टी की,
निज गौरव का अभिमान है।
प्रताप,शिवाजी जैसे शूरवीरों का,
शौर्य रवि सा तेज समान है।
गंगा-यमुना इसकी तहजीब गाती,
सोने की चिड़िया को पंख लगाती।
गाथाएं भरी पड़ी वेदों और पुराणों में,
जो कीर्ति को नित नए चार चांद लगाती।
नही कोई ऐसा देश मिलेगा,
नही कही ऐसा वेश मिलेगा।
गांधी,गौतम विचारधारा नित,
जहां ही सरस सी बहती हो।
मेरे मन की अभिलाषा है,
वो दिन दूर नही हो जब
भारत मेरा विश्व गुरु है,
ये सारी दुनिया कहती हो।
