मै हूं, हर भीड़ में, हर चेहरे
मै हूं, हर भीड़ में, हर चेहरे
मै हूं, यहीं कहीं
हर भीड़ में,हर चेहरे पर
कंधे पे एक लैपटॉप बैग,
सफेद शर्ट,
काली पैंट और जूते।
कल की पीढ़ी जिन्हें
निकम्मा समझती है
मां दिन रात फोन को आग
लगने कि धमकियां देती है।
मै हूं, वही
शेक्सपीयर की हेमलेट
भी पढ़ता हूं
और भागवत गीता भी,
कल कुरान ए शरीफ भी पढ़ी थी।
उसी बैग में कभी
बियर की बोतल होती है,
और उसी बैग के आगे वाले
छोटे से खंड में एक डायरी भी।
मैं हूं वही
इंग्लिश बोलता हूं,
हिंदी लिखता हूं
और लखनवी समझता हूं
सुबह रोज पास वाले
शिव मंदिर की
घंटियों से शुरू होती है,
और शाम पीर बाबा वाले
मस्जिद की अज़ान से।
मैं हूं, यहीं कहीं हर भीड़ में,
हर चेहरे पर
मेट्रो की हर सीट पर,
बस की छत पर,
सड़क पर
बड़ी गगनचुंबी
कंपनी में मैनेजर,
और उसके सामने ठेले पे
छोले भटूरे बेचने वाला
छोटू भी मैं ही हूं।
कभी भीड़ तो कभी उसी भीड़ को
संबोधित करने वाला नेता भी हूं।
मैं 'तुम ' हूं, तुम' मैं' हो
मैं हूं, यहीं कहीं, हर भीड़ में हर चेहरे पर।