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Ashutosh Shrivastwa

Abstract

4.5  

Ashutosh Shrivastwa

Abstract

हम अपने अंदर ढूंढ़ रहे हैं

हम अपने अंदर ढूंढ़ रहे हैं

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302


हम अपने अंदर ढूंढ़ रहे है,

हमीं को इससे पहले इतना वक़्त नहीं था,

अब जब वक़्त है तो लगता है जैसे

हमें किसी और कि नहीं, हमारी जरूरत है।


वो बचपन वाला "मैं" जो शाम को 6 बजे हाथ पैर

धोकर पढ़ने बैठ जाता था,

लालटेन की रोशनी में, की पापा का खौफ था

वो "मैं" जो उस खौफ की वजह से

घड़ी में वक़्त देखना सीख गया था।


वो "मैं" जो समझता था, गर रोटी के साथ गुड़ मिला

तो इसका मतलब है अनाज वाली ढेंकी खाली है अब

वो "मैं" जो जूते छोटे होने की बात पापा को नहीं बताता था,

ये सोचकर की उनकी जेब से निकले पैसे बस पेट भर सकते हैं अभी,


शौक नहीं, फिर भी, हम थे, हंसते हुए आजाद, ठहाके

वाली हंसी लिए माथे पर सिकन नहीं, पसीने होते थे

हमारे अंदर बस उसी "मै" की जरूरत है,

दोबारा और हमेशा के लिए वो "मैं" उसके बाद भरशक

कोई और ना रहे हम अपने अंदर ढूंढ़ रहे हैं हमीं को।


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