वतन से प्रेम जो करने लगा है
वतन से प्रेम जो करने लगा है
वतन से प्रेम जो करने लगा है,
कहाँ वह मौत से डरने लगा है।
सही में लाल है भारत का सच्चा,
जो सरहद पार से लड़ने लगा है।
बचाने लाज माता की गये जो,
कफन से आज फिर ढकने लगा है।
बहाए खून की नदियाँ हमेशा,
लहू का बूँद जब गिरने लगा है।
भले सीने में खाई गोलियाँ हो,
मगर पीछे नहीं हटने लगा है।
कभी पीछे नहीं हटते समर में,
कदम सरहद पे जब बढ़ने लगा है।
नहीं झुकता कभी भी भाल उनका,
कटारों से भले कटने लगा है।
शहीदों को हमेशा गर्व है यह,
तिरंगे का कफन मिलने लगा है।
नमन करता सदा उस वीर को मैं,
मरण को जो वरन करने लगा है।।