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Anuj Patairaya

Abstract

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Anuj Patairaya

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प्रकृति की कीमत

प्रकृति की कीमत

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मनुज ये जो सुख भोग रहे हो

नित नए आयाम रच रहे हो।

करके नित प्रकृति का दोहन

आधुनिकता की होड़ में दौड़ रहे हो।


पर्वत झरने फूल और वन

जिन्हे देख तुम होते मगन।

क्या कुछ नही दिया उसने

कभी न कुछ लिया उसने।


क्या तुमने उसे दिया कभी कुछ

क्या उसके लिए कभी किया कुछ।

विलासता के तुच्छ जीवन के लिए

धातु पत्थर तक ले लिया सब कुछ।


सोचो क्या जीवन है मनुज उसके बिन

जलवायु कुछ ना पाओगे उसके बिन।

बाँटों सुख-दुख उसके बैठो उसके पास

उसे भी दो पल सुकून के रात और दिन।


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