STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Romance Classics

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Romance Classics

एक पत्नी की व्यथा

एक पत्नी की व्यथा

1 min
358

एक पत्नी की व्यथा 

शादी से पहले वाले सब दिन

कितने सुनहरे हुआ करते थे 

जब तुम मुझ पर कविता लिखते थे

और कभी गजल सुनाया करते थे 


कभी प्रेम पत्र में दिल के मखमली अहसास 

भरकर खुशियों की सौगात भेजा करते थे

रोज रात को घंटों तक प्रेम पगी बातों से

मेरे दिल की धड़कन झनझनाया करते थे 


दिन में कई कई बार मैसेज कर करके 

"आई लव यू जान" बोला करते थे 

मेरी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए

तुम क्या क्या जतन किया करते थे।


शादी के बाद भी सारा ध्यान 

मुझ में ही रमा रहता था आपका

मुझे देखते ही चांद की तरह 

चेहरा खिल उठता था आपका।


मगर अब ना जाने क्या हो गया है 

मेरे एक एक शब्द से भी चिढ़ होने लगी है 

जिन कविता और गजलों में में बसती थी 

वही अब मेरी हालत पर आंखें भिगोने लगी हैं 


अब तो एक नजर देखने की भी फुर्सत नहीं

मुझे क्या चाहिए ? इसकी भी परवाह नहीं 

वो "सुनहरे दिन" अब कहां खो गए हैं ? 

हृदय की वीणा के तार कहां सो गए हैं ? 


एक बार फिर से तुम वैसे ही बन जाओ ना 

दिन भर ना सही, एक बार तो प्रेम से बुलाओ ना 

कोई कविता ना सही केवल नाम ही लिख दो 

वो "सुनहरे दिन" फिर से लौटा लाओ ना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract