एक पत्नी की व्यथा
एक पत्नी की व्यथा
एक पत्नी की व्यथा
शादी से पहले वाले सब दिन
कितने सुनहरे हुआ करते थे
जब तुम मुझ पर कविता लिखते थे
और कभी गजल सुनाया करते थे
कभी प्रेम पत्र में दिल के मखमली अहसास
भरकर खुशियों की सौगात भेजा करते थे
रोज रात को घंटों तक प्रेम पगी बातों से
मेरे दिल की धड़कन झनझनाया करते थे
दिन में कई कई बार मैसेज कर करके
"आई लव यू जान" बोला करते थे
मेरी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए
तुम क्या क्या जतन किया करते थे।
शादी के बाद भी सारा ध्यान
मुझ में ही रमा रहता था आपका
मुझे देखते ही चांद की तरह
चेहरा खिल उठता था आपका।
मगर अब ना जाने क्या हो गया है
मेरे एक एक शब्द से भी चिढ़ होने लगी है
जिन कविता और गजलों में में बसती थी
वही अब मेरी हालत पर आंखें भिगोने लगी हैं
अब तो एक नजर देखने की भी फुर्सत नहीं
मुझे क्या चाहिए ? इसकी भी परवाह नहीं
वो "सुनहरे दिन" अब कहां खो गए हैं ?
हृदय की वीणा के तार कहां सो गए हैं ?
एक बार फिर से तुम वैसे ही बन जाओ ना
दिन भर ना सही, एक बार तो प्रेम से बुलाओ ना
कोई कविता ना सही केवल नाम ही लिख दो
वो "सुनहरे दिन" फिर से लौटा लाओ ना।

