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Swati Garg

Abstract

4  

Swati Garg

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मेरी डायरी

मेरी डायरी

2 mins
249


यूँ तो ये कुछ पन्नों की किताब है

पर अपने अंदर दर्द लिए हज़ार है, 

हाँ वो मेरी डायरी है

जिसमें मुझसे जुड़े किस्से बेशुमार है।

 

रहती हूँ चुप चुप अब मैं

ये लोग अक्सर कहा करते हैं, 

नहीं करती अपनी खुशी और दर्द साझा किसी के साथ

इस बात का गिला करते हैं। 


हाँ हो गए हैं दूर सबसे

क्यूँकि कर ली अब पन्नों से दोस्ती है, 

मेरी डायरी मुझे बोलने से नहीं रोकती है। 

मेरी हर खुशी और गम की

इसमें लगी कतार है, 

वो मेरी डायरी ही है

जिसमें मुझसे जुड़े किस्से बेशुमार है। 


मेरी हर खुशी हर दर्द को 

मेरे संग कुछ यूँ बाँटती है, 

मैं खामोश रहूँ तो लगता है

मानो हक से मुझे डाँटती है। 

मेरे दर्द को स्याही से मिलकर अपने पन्नों में लपेटती है, 

कुछ इस कदर ये मुझे अपने अंदर समेटती है। 

यूँ तो पूछती नहीं है मुझसे 

कारण किसी बात का, 

पर फिर भी मुझे अच्छे से समझती है। 


मुझे हर रिश्ते का थोड़ा थोड़ा प्यार भी जताती है, 

और ना ही मेरी कही किसी बात का बुरा मानती है। 

मेरे राज़ों के साथ साथ ये मुझे भी सम्भालती है, 

देखती है मुझे अकेला खुद ही में घुटते हुए

तो हर दफा मुझे अपने पास बुला डालती है। 

सोचती हूँ कभी कभी

उठते तो होंगे इसके अंदर भी सवाल है, 

पर मचाती नहीं ये कभी भी बवाल है। 


इसलिए मुझे इससे इतना प्यार है, 

वो मेरी डायरी ही है

जिसमें मुझसे जुड़े किस्से बेशुमार है। 

हाँ वो मेरी डायरी ही है

जिसने मुझे सम्भाला हर बार है।। 



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