STORYMIRROR

Swati Garg

Abstract

3  

Swati Garg

Abstract

हर दिन दिवाली और ईद है

हर दिन दिवाली और ईद है

1 min
280

अपना लो इस दीन को, 

ऐसी भी क्या ज़िद है, 

बनाया है जबसे तुम्हे हमदर्द अपना, 

हर दिन दिवाली और ईद है। 

जबसे जाना है तुम्हे, 

नही इस दिल का कोई मीत है, 

जबसे माना है तुम्हे, 

हर हार में भी जीत है। 

जबसे देखा है तुम्हारी आँखों में, 

तुम्ही से दिल को प्रीत है,

बनाया है जबसे तुम्हे हमदर्द अपना, 

हर दिन दिवाली और ईद है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract