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Sajida Akram

Classics

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Sajida Akram

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"मेरी बेटी"

"मेरी बेटी"

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जब उठती है, 

सो कर मेरी बेटी 

जाग उठता है, सारा घर,

साथ-साथ उसके,

पूरी जीवन्तता के साथ।


नरम धूप उतर आती है 

छत पर आंगन में

फैल जाता है

पुखराजी प्रकाश, 

हवाएं ठुमक कर,

गाने लगती हैं, प्रभाती


जब हंसती है, मेरी बेटी,

हँस उठते हैं।

क्यारी में लगे,

फूल सूरजमुखी के,

निखर उठती है,


हरियाली दूब की

चहचहाने लगती है,

चिड़ियाँ,

फुदक-फुदक कर

ठुमकने लगती है,

गिलहरी ...।


सब मिल कर, 

देतें हैं दोस्ती का पैगाम।


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