मेरे मन में प्रणय समर हैं
मेरे मन में प्रणय समर हैं


चली आओ मनमोहिनी मेरे मन में प्रणय समर है,
लगा ऐसा द्वंद मेरे विचारों का यह तन्मय अमर है,
उड़ा ले चली ये हवाएँ केश में तुम्हारे जो गन्ध को,
तोड़ते हैं वे भूलकर सब हया, उपवन के फूल को,
तुम कहती हो ये हवाएँ कुछ गर्म, कुछ मशहूर है,
पर हम कहते ये हवाएँ कुछ शर्त पर मगरूर है,
रख हथेली पर दिये को अंधेरी रातों का इंतजार है,
चली आओ राधिकारानी मेरे मन मे प्रणय समर हैं।।
ओढ़ ले चादर अगर वह धूप के साये में आकर,
फिर तुम्हारी कितनी गज़ले लिये आकाश तैयार है,
ठेलती जा रही हो किंचित मन की इन हदबंदियों को,
तोड़ती जा रही हो जैसे मेरे प्यार की उन जंजीरों को,
मगर कैसे तुम पीछा छुड़ाओगी आगोश के बंधनों से,
क्या विस्मृत कर पाओगी मेरी यादों की दास्तान को,
क्या भूल पाओगी उन वक्ष की सिसकियों को,
रख हथेली पर दिये को अंधेरी रातों का इंतजार है,
चली आओ मनमोहिनी मेरे मन मे प्रणय समर है।।