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Vidya Sharma

Comedy

4  

Vidya Sharma

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मेरे ईश्क की दास्ताँ

मेरे ईश्क की दास्ताँ

2 mins
199


   

सुनो दोस्तों ! दिल थाम कर,

ना देना तसल्ली, ना आंसू बहाना ,

यह पंगा लिया था मैंने जानकर ।

मेरा इश्क पहला था, मासूम था,

कोरा था ,कंवारा था ।

लोगों ने मुझे खींचा था ,पुकारा था,

कुछ ने लौटाने को पत्थर भी मारा था ः

पर भूत मुझ पर सवार था इश्क का,

मुझ पर चढ़ा खुमार था ।

वह महबूबा बड़ी ढीठ और चालक थी,

रात भर साथ रहती,

फिर भी सुबह आ धमकती।

मेरे इश्क के चर्चे, अब तो आम हो गए थे,

इस इश्क के चक्कर में,

हम खामखा बदनाम हो गए थे ।

माँ तो अपनी थी, संभाल लेती पर,

बापू से अक्सर गालियां ही मिलती ।

फिर भी उसका नशा ऐसा होता था,

कि हर सितम गवारा था ।

घर में, बाहर, सुबह- शाम, दिन- रात ,

हर पल वो मेरे साथ रहने लगी थी ।

पर हद तो तब हुई, जब वह 1 दिन ,

सरेआम कक्षा में आ पहुंची ।

मास्टर साहब गुणा भाग में उलझे थे,

और मैं उस कमसिन के पहलू में खो गया ।

उसकी रेशमी जुल्फों की खुशबू,

मुझे ख्वाबों की दुनिया में घुमाने लगी,

पर अगले ही पल, मास्टर साहब का डंडा ,

मेरे और मेरे इश्क के बीच आ गया ।

" ऐ कल्लू ! तू कक्षा में बैठे-बैठे कैसे सो गया ?

चल मुर्गा बन और बाग लगा ।"

यह सुनते ही प्रेमिका जी आंखों के रस्ते भागी,

हाथों में जब गूंजे डंडे, सोई अखियां जागी ।

सोच रहे होंगे अब आप ,

कौन थी प्रेमिका मेरी, क्या था उसका नाम ?

जिसके इश्क में में हुआ बदनाम,

निंदिया रानी था उनका नाम ।

उसके इश्क में पागल था सुबह शाम,

पर जब से मास्टर जी ने डंडा मारा ,

उतरा निंदिया का खुमार

हमने उससे नाता तोड़ा

पहले ईश्क का से दामन छूटा ।



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