मेरे हुज़ूर
मेरे हुज़ूर
बारिश की बूंद जो तेरे पलकों पर गिरे
धीरे धीरे पहुंचे जो तेरे पलकों के सिरे
जैसे अश्कों में भीगे तेरे नयन हो
जो पत्थर को भी बना दे बेकाबू
यह कैसा तेरे नयनों का जादू
जब टपके तेरे पलकों से वोह बूंद
जो मुस्काए तू अपने नयनों को मूंद
गिरे बूंद जो तेरे लबों पर लगे जैसे
कोमल पंखुड़ी पर ओस हो
जो बनादे पत्थर को बेकाबू
यह कैसा तेरे लबों का जादू
तेरे पैरों में चांदी की पायल
जो बरसों से करती है मुझको घायल
तेरे पायल के घुंगरू के बोल
मचा रहे हैं प्यार का शोर
जो बनआदे पत्थर को बेकाबू
यह कैसा तेरे पायल का जादू
तेरे माथे की बिंदिया,तेरे मांग का सिंदूर
संग हैं तेरे काया के पर हैं मेरे मन के गुरुर
दमकती तेरे माथे की बिंदी जैसे
जैसे गुलाब पर पड़ती कोई किरण हो
कामना है मेरे मन की , हर पल तेरा ही स्मरण हो
जो पत्थर को बनादे बेकाबू
ये कैसा तेरे बिंदिया का जादू।।