मेरे हमसफ़र तुम हो !

मेरे हमसफ़र तुम हो !

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और कैसे बताऊँ तुम्हे की तुम मेरे क्या हो

मेरी ग़ज़लें मेरी नज़्में मेरा लहजा तुम हो


दुनिया वालों से वास्ता ही नहीं रक्खा मैंने

मुझ को दुनिया से ग़रज़ क्या मिरी दुनिया तुम हो


तुम को सदा सर झुका कर ही पढ़ा है मैंने

जैसे आसमां से उतरा कोई फरिश्ता तुम हो


तुम न होते तो मेरा पुनर्जन्म ही ना होता

मेरी ज़िन्दगी की स्याह रातों के चाँद तुम हो


मसीहाओं से मरहम की तलब नहीं मुझ को

दिल ये जानता है की मेरे ज़ख़्मों का इलाज तुम हो


मेरी साँसों का वसीला है तुम्हारी निस्बत ,

मेरी पांव की जमीं हो तुम मेरे सर का आसमां तुम हो


अपनी हाथों की लकीरों पर पूरा भरोसा है मेरा

मेरे हमसफ़र मेरी तक़दीर में लिखे तुम हो ! 


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