मोहब्बत कर बैठा
मोहब्बत कर बैठा
मोहब्बत करने चला था जिस्म से पर
कोठे वाली से मोहब्बत कर बैठा
हाथ रखा उसने दिल पर मेरे और
मैं हाथ माथे पर धर बैठा !
नोटों से लबालब भरे थे जेब मेरे
मैं रातों की हवस खरीदने निकला था
लोगों की निगाहें उसपे गड़ी थीं और
मेरा दिल झुकीं निगाहों पे फिसला था
उसके दर पर लोग पैसे लुटा रहे थे
और मैं अपना दिल लुटा बैठा!
वह जिस्म छिपाती रही और
मै उसकी रूह तलाशता रहा
वह थोड़ी थोड़ी दूर जातीं रहीं
मैं और भी पास जाता रहा
इतने पर भी नेक समझा उसने तो
मै दातों तले उंगली धर बैठा !
नींद रातों की और चैन दिन का खोया
आखिर क्यों अब मैं भी जान गया हूँ
जिंदगी भी एक मकसद लगने लगीं है
रूहानी ईश्क को पहचान गया हूँ
आईने में सूरत अपनी मिलती नहीं
उसमें भी उसी का दीदार कर बैठा!