एक चांदनी रात
एक चांदनी रात
अपने लिए
एक रात को ढूँढ रही थी
वो थी चाँद के आगोश में
उस रात में बादल था
तारे भी थे
समुद्र को तो जैसे पंख
लग गए थे
मैंने चाँद को देखा
मेरे भीतर के समुद्र में
उफान आने लगा
पता नहीं चला
मेरे आँखों के पानी में
ज्यादा नमक था या समुद्र में
होंठों से हँसी झांक रही थी
बाहर आने के लिए
मगर आजकल तो बुद्ध भी
भटक गये हैं
अँधेरे में
दुःख में
अप्राप्ति में
लालच में
फिर हँसी की
औकात क्या है, जो
वह रास्ता ढूँढने की
हिमाकत करे
चलो मेरे शब्द सारे
रख लो अपने अर्थों को
सम्भाल कर
व्याप्त है प्रेम की धारा
वो जंगल खत्म होने तक
चलो मेरे साथ
मैं दे दूंगी तुम्हें पता
एक चांदनी रात का।