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मेरे चाँद से दुनिया दीदार

मेरे चाँद से दुनिया दीदार

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ये शहर की गलियाँ यूँ गुलजार सी है

शायद तेरे मेरे इश्क की बात हो रही है


ये इश्क तुमने कुछ इस तरह फरमाना

धीरे-धीरे ये साँसें बेकाबू सी हो रही है


आईना भी कुछ धुंधलाया सा है

आँखों की आँखों से बात हो रही है


रूह से रूह का मिलन कब होगा

ये साँसें भी अब बेजान हो रही है


आज निकला घर से चौराहे की तरफ

खिड़कियों से नजरें चार हो रही है


मन की बैचनी फिर से ये कह रही

आज फिर से मुलाकात हो रही है


उसकी आँखों में डूबकर देखा तो

मेरी साँसें भी नीलाम हो रही है


पुष्प फिर से पल्लवित हो रहा है

भरी धूप में बारिश सी हो रही है


रूप निखर आया होगा शहर का

सावन के आने की बात हो रही है


ये चाँद भी आधा छिप सा गया है

मेरे चाँद से दुनिया दीदार हो रही है।।



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