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Harsh Mathur

Drama

3  

Harsh Mathur

Drama

मेरा सफ़र

मेरा सफ़र

1 min
402


ख़ुश थी

संतुष्ट थी

उत्साह से भरी थी

परेशानियां कम थी।


मैंने उठाई अपनी साइकिल

और निकल पड़ी सैर पर

कुछ दूर पर,


सड़क पर कीचड़ था

एक कार वाला आया

कीचड़ के छींटे उछाल गया।


थोड़े छींटों से

पड़ता नहीं फ़र्क मुझे

गिरने और चोट लगने का

डर भी नहीं मुझे।


बहती रही मैं आगे

कभी दाॅंए कभी बाॅंए

नापते हुए रास्ता

एक अजनबी मंज़िल का।


याद आये रॉबर्ट फ्रॉस्ट के शब्द

जब अया एक मोड़

नाचो उनकी ताल पे

या करो रचना कोई।


उनकी ताल अच्छी थी

पार जड़ थी

उसमे न कोई बदलाव

ना कोई सुधार

पर खूब ऐशो-आराम।


मेरी रचना थी कच्ची

ना आधार न प्रेरणा

चल पड़ी मैं

कच्छे रास्ते पर

क्यूॅंकि मैंने हमेशा

सामान्यता से ऊपर

उठना चाहा है।


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