कर्मफ़ल
कर्मफ़ल
क्यूँ रोता है तू,
कर्मफ़ल के लिये।
क्यूँ मरता है तू,
क्षनिक संतुष्टी के लिये।
तू है एक तूफ़ान,
मत डर हवा के प्रवाह से।
अब आने दे उफ़ान,
जिन्दगी के भूचाल से।
अब त्याग दे इस आलस्य को,
सवेरा हो चला है।
समेट अपनी शक्ति को,
युद्ध का आह्वान हो चुका है।
कर इबादत,
परिश्रम की, दृढ़ता की,
बन खोजी,
असुविधा में सुविधा की,
उठा ले धनुष और तोड़ दे,
निभा ले भूमिका तू भी राम की।