क्यूँ कि मेरी गंगा
क्यूँ कि मेरी गंगा

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सच की तलाश में
एक अनुमानित मार्ग पर
जानी पहचानी कुछ
अनजानी
कहानियों को बढ़ता
देखता
क्यूँ कि मेरी गंगा
अब मेरी नहीं रही।
मैं हूँ
देवप्रयाग में
हरिद्वार में
वाराणसी में
अनंत हूँ
फिर भी शून्य हूँ
क्यूँ कि मेरी गंगा
अब मेरी नहीं रही।
अक्सर कर कुछ
अजीब होता है
साक्षात्कार होता है।
जैसे समय पीछे हुआ हो
पुराने गीतों का समा हो।
निहारता हूँ
सराहना करता हूँ
फिर वापस राह पर
आता हूँ ।
क्यूँ कि मेरी मंज़िल
कुछ और है
क्यूँ कि मेरी गंगा
अब मेरी नहीं रही।