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Harsh Mathur

Others

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Harsh Mathur

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ऐेे जिगर के टुकड़े

ऐेे जिगर के टुकड़े

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तू वो टुकड़ा है

जो मेरे जिगर से

मेरी साँसे लेकर

मुझसे दूर हो गया है।


बंद किया मैने तुझे खोजना

यकीन दिलाया की पूर्ण हूँ मैं।

फिर से चलाई ये साँसे

खोजी दिलचस्पी रगों में।


तू अवाज़ लगाता है मुझे

मेरे हाल पूछता है।

मैं कहता हूँ मैं ठीक हूँ

तेरे जाने के बाद सब बढ़िया है।


तू देख़

फिर मौसम बदलेगा

मेघ बरसेंगे

धरती हरी होगी

और घाव भरे होंगे।


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