मेरा प्रेम
मेरा प्रेम
कुछ खुद में ही मुस्कुरा लेती हूँ,
याद जो तेरी आए,
कुछ गीत गा लेती हूँ।
ख्वाबों जो मिल जाते हो,
सारे गिले शिकवे सुना देती हूँ,
फिर भूल सब बस तुझमे
ही खो जाती हूँ,
एक जल की बून्द सम,
तुझमे मिल अथाह सागर हो जाती हूँ,
वह प्रेम का सागर,
जो बस देना सिखाता हैं,
बस मन से मन का मिलन कराता हैं,
देखा नही कभी तुझे इन चक्षुओं ने तो क्या,
बस आत्मा का स्पर्श अनुभव किया करती हूँ,
तू ही है बस एक मेरा,
बस तुझमे खो जाया करती हैं,
तुझसे ही करती हूँ ढेरों बातें,
तेरे ही कंधों पर सिर रख रो लिया करती हूँ,
प्रियतम बस तू ही दिखता हैं मुझे,
उसी प्रेम में खो जाया करती हूँ,
हर पल ही बस तुझे ही
संग पाया करती हूँ,
कैसा अद्भुत प्रेम है मेरा,
बस मैं इतराया करती हूँ,
कभी झूम झूम संग तेरे
खवाबो में ही नृत्य किया करती हूँ,
तेरे ही नाम से बस जानी जाती हूँ,
हर पल बस तुझमे ही खोती जाती हूँ,
फिर मैं मैं न रहती,
बस तू ही तू हो जाती हूँ।