मेरा पहाड़
मेरा पहाड़
ऐ पहाड़ मेरे दुख को जाने तू
पर तेरे दुख को जाने कौन।।
होकर अभिलाषी मानव मन
कर दिया तेरा उजाड़ तन
जाने क्यों है तू मौन?
ऐ पहाड़ मेरे दुख को जाने तू,
पर तेरे दुख को जाने कौन।।
सूखे झरने सूखे खेत,
बह गया पानी सुप्त स्रोत।।
विकास के जो चक्र चले
कितने पुष्प जीवन न खिले।।
कहीं छिना मुकुट हिमाला।
कहीं वस्त्र धरा पेड़ पुष्प निराला।।
ऐ पहाड़ मेरे दुख जाने तू,
पर तेरे दुख को जाने कौन?
