मेरा काम मेरी नौकरी
मेरा काम मेरी नौकरी
मैं
एक शिक्षिका
मेरी नौकरी अध्यापन
पर इन सबसे पहले
मैं एक गृहिणी
दो बेटों की माँ
नौकरी से पहले
घर व घर का काम
कह सकते हैं मुझे
सुपर वुमैन...
मुझे गर्व है अपने आप पर
अपने माँ पापा पर
जिन्होंने ने मुझे इतना सशक्त बनाया
घर के साथ -साथ जाती हूँ स्कूल भी
दसवीं तक के बच्चों को पढ़ाती हूँ हिन्दी ।
तन- मन से देती हूँ पूर्ण योगदान
दसवीं का रिजल्ट रहता 100%
मिलता अवार्ड भी ।
मेरा विश्वास है
जो भी करो, करो मन से
दो अपना सम्पूर्ण सहयोग।
भाग्यशाली हूँ जो जुड़ी हूँ अध्यापन से
बच्चों का भविष्य गढ़ती हूँ
मातृभाषा के प्रचार व प्रसार में
अहम् भूमिका निभाती हूँ।
टैक्नोलॉजी के युग में
जब मेरे बच्चे कविताएँ लिखते हैं
मन पुलकित हो जाता है
लगता है मानो जीवन सार्थक हो जाता है
पास आऊट बच्चा जब मिलने आता है
तब नौकरी का मतलब समझ आता है ।
पैसों के लिए तो सब करते हैं
पैसा आज की जरूरत है
पर ,जब मन को संतुष्टि मिले
तब सार्थक होती है नौकरी ।
स्कूल की नौकरी
ऊपर से शिक्षिका
बच्चों का विश्वास
माँ सा व्यवहार की आस।
इतना आसान नहीं है
घर के साथ साथ नौकरी कर पाना
गर मन में हो चाह
तो कुछ भी किया जा सकता है
इसी विश्वास के साथ करती हूँ काम
स्कूल या घर, प्रयास यही
सब खुश रहें मुझसे ।
पर एक बात सच है
कभी -कभी दो पाटों के बीच पिस जाती हूँ
गला घोंटना पड़ता है इच्छाओं का
बात पैसे की नहीं
मन मर्जी करने की है
अपनी खुशी से अपनी ही खुदकुशी .....
हाँड माँस का शरीर है
भावनाएँ है ...
तालमेल बिठाने में सब कुछ संभव है
हर दिन होत न एक समान
ये तो जिंदगी की धूप छाँव है ।
अब मन को समझा लिया है
नौकरी है तो नखरा क्या!!
गृहिणी हूँ तो काम से डरना क्या !!
तालमेल बिठाना आ गया
बंडल चैकिंग तो खिचड़ी बनाओ
पैपर बनाना तो खाना आडर करवाओ ।
शायद यही ठीक है
परिवार का साथ करवा देता है
हर मुश्किल को पार
घर में हैं तो पूरे घर के
स्कूल है तो पूरे स्कूल के ।
एक रूल जिंदगी का
हँस के जीओ तो गीत है ये जिंदगी ....
सुबह कूकर की सीटी से शुरू दिन
रात को स्टोरी मिरर की कविता लिखकर समाप्त
बीच का समय स्कूल के नाम ।
मुझे नहीं लगता मेरी भावनाएँ पढ़
मुझे सुपर वुमैन कहने में कुछ सोचना पड़ेगा...
