मेरा गाँव मेरा देश
मेरा गाँव मेरा देश
इस शहर ने मुझे आखिर अपना मान ही लिया
पता ही न चला कब इसकी अजनबियत खत्म हो गयी
शुरुआती दिनों में इस शहर ने मुझे अजनबियत से भर दिया था
लेकिन उस अनमनेपन में भी यह शहर मुझे सपने दिखाता रहा
उसने मेरे ख़्वाबों को पूरी ईमानदारी से जिंदा रखा
पहले मुझे यह सिर्फ इमारतों और सड़कों वाला शहर लगता था
लेकिन धीरे धीरे इसकी हर गली हर मोड़ मुझे भाने लगा
हम दोनों में फिर अपनापन बढ़ना शुरू हुआ
लगा शहर में इमारतें और सड़के नही बल्कि उसमें रूह भी है
इसने मुझे अब अपना प्रवासी बना लिया है
गाँव मे सब लोग मुझे शहर का ही बाशिंदा मानते हैं
आज मैं खुद को शहरवालों से ज्यादा अमीर पाता हूँ
क्योंकि अब मैं जान गया हूँ कि शहर के साथ गाँव भी मेरा है और देश भी!
