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मेला

मेला

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कभी मिलने–जुलने

हल्ला-गुल्ला करने

जलेबी खाने

मस्ती करने

खिलौने खरीदने

तमाशा देखने

हाँ ,बस मेला ऐसा ही तो होता था ,

पर

अब मेले

बस किताबों, कहानियों

में रह गए हैं

सच में कभी सामना हो भी जाये

तो वर्ष में मुश्किल से एक बार ही

खेल भी सिर्फ वो ही ,जो सिखाये गए

उनके अपने खेलों को जगह नहीं है हमारे स्कूलों में

फिर उन्हे मेले में बुलाया गया

कुछ अलग सा मेला

खेल थे

पर कुछ दूसरे किस्म के

कुछ भाषा के खेल ,

कुछ गणित –विज्ञान के खेल

उन्हे खेल –मार्ग द्वारा

ज्ञान की दुनिया में ले जाया जा रहा था ,

पर उन्होने भी सब गतिविधियों में से खेल को ही चुना ,

वो खूब खेले –भाषा ,गणित ,विज्ञान

मिट्टी से, कागज से ....

वो खुश थे ,वो और खेलना चाहते हैं ,

पर ये मेला बस एक दिन का ही था ,

फिर वही बस्ता , वही क्लास

किताबों में सिमटी दुनिया ,

जो उनकी तो नहीं थी ,

वही शिक्षको की हिदायते ,

ये करो ,ये मत करो

वो खाली से पात्र ....

नहीं समाएगा इसमे कुछ भी

जैसे शिक्षक इसे भरना चाहते हैं

उन्हें

तो बस मेला चाहिए

खेल वाला , मस्ती वाला

वो पात्र जो कभी खाली था ही नहीं ,

हम सब भी देख पाएंगे

उन्हे इस दुनिया को भरते हुए

इसके लिए उन्हे स्कूल नहीं

मेला चाहिये।


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