मेघा
मेघा
क्या कहूं कैसे कहूं
मेघा मोरे गली ना बरसो
घनघोर घटा बैरन सी लागे
मुझे बिरहन की व्यथा बढ़ावे
काजल मोरा फैला जाए
अश्क अविरल बहते जाए
तेरी रिमझिम तन मन जलाए
पिया नहीं तो कुछ ना सुहाए
क्यों तू कलेजे को आग लगाए
पिछले बरस गए थे साजन
ना कोई संदेसवा ना खबर आई
नैन जो उन से लगाए मैंने
जग में हुई खूब हंसाई
फिर भी तुझे लाज ना आवे
क्यों तू तड़पन को बढ़ावे
मुझको सावन रास ना आवे
पिया मिलन की आस लगावे
बावरी सी अखियां ढूंढे उसको
जाने किस देश में छुप गया वो
वही जा के बरस वही जा के रो
शायद उनको मेरी याद सतावे
क्या कहूं कैसे कहूं।