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Sulakshana Mishra

Romance

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Sulakshana Mishra

Romance

मधुर निवेदन

मधुर निवेदन

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प्रियतम मेरे

कुछ मन के हैं उद्गार मेरे

जो बन रहे मन पर भार मेरे।

अजीब सी स्थिति है असमंजस की

दिल में है एक कश्मकश सी।


होता है अक्सर यही,

तुम गलत होते नहीं

और मैं भी होती हूँ सही।

परिस्थितियों का है ये भँवर जाल

समझ से परे है समय की चाल।


मेरे इस मधुर निवेदन को 

प्रियतम अब स्वीकार करें।

हम दोनों कुछ और नहीं

बस दो तन में बसे एक प्राण हैं

अलग-अलग नहीं हम दोनों

एक ही कृति के दो भाग हैं हम,

इस सत्य को अब मान लें।


कुछ त्रुटियाँ मेरी 

तुम अनदेखी कर दो।

कुछ कमियों पर तुम्हारी

मैं भी आँखें मूँद लूँ।

जब आएगा जीवन का सांध्य काल

कोई न पूछेगा हमारा हाल।


जब कोई न होगा पास हमारे

तब हम ही होंगें एक दूजे के सहारे।

तो क्यूँ न बन जाएं हम आज ही से

एक दूजे के प्रियतम प्यारे ?


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